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ग्लोबल वार्मिंग! एक वैश्विक और अजैविक संकट के किस्से बयां कर रही अप्रैल की गर्मी: रजनीश राय

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ग्लोबल वार्मिंग! एक वैश्विक और अजैविक संकट के किस्से बयां कर रही अप्रैल की गर्मी: रजनीश राय अप्रैल माह की गर्मी जो करीब 42°C तक पहुंच गई है, गर्म हवाएं चल रही हैं, लू का विकराल रूप प्रदर्शित हो रहा है, लोग बीमार पड़ रहे हैं, जो पिछले दो दशकों का रिकॉर्ड तोड़ रही है, की मूल वजह ग्लोबल वार्मिंग ही है, इसको झूठलाया नहीं जा सकता। विश्व के पढ़े-लिखे समाज तथा राष्ट्र निर्माण एवं विश्व निर्माण में लगे लोगों के लिए अब ऐसा नहीं कि ग्लोबल वार्मिंग के किस्से नये है। ऐसा नहीं है कि ग्लोबल वार्मिंग के बारे में हम जानते नहीं है, ग्लोबल वार्मिंग कैसे होता है? इसके बारे में हमको पता नहीं है? परंतु हमारी असहिष्णुता ही कहिए कि सब कुछ जानने के बावजूद भी हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने वाली स्थिति में बने रहे हैं, बने हैं और बने रहना चाहते है, और ग्लोबल वार्मिंग का खतरा दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है और अब वह अपने विकराल रूप में प्रदर्शित भी हो रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह के ठोस कदम उठने चाहिए इस बिंदु पर, वैसा कदम उठ नहीं रहा है। कागजी दावे और कोरे रिपोर्ट तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर, राष्ट्रीय स्तर

चाय पीनी है, तो नींबू वाली चाय पिए तब चाय नशा नहीं दवा बन सकती है।

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चाय के शौकीनों के लिए वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित यह खास रिपोर्ट:-  आज चाय एक ऐसा पदार्थ बन गया है, जिसके बिना हमारा जीवन फीका सा लगने लगता है। हम सुबह बिस्तर छोड़ने से पहले चाय खोजने लगे हैं और पीते भी है। हम प्रत्येक कुछ घंटों के बाद जब तक जगे होते हैं, चाय पीते रहते हैं, जैसे प्रयोगशाला में कार्य करने वाला शोधार्थि हो या शोध निर्देशक, सरकारी दफ्तर मे काम करने वाला हो कर्मचारी हो या प्राइवेट दफ्तर मे, मजदूर हो या बहुत बड़ा आदमी सबका यही स्वभाव बन गया है कि वह बार-बार चाय पीता है। हमारे घर कोई रिश्तेदार आया तो मेहमान नवाजि के क्रम में चाय पिलाना एक महत्वपूर्ण तरीका बन चुका है। कहते है किसी भी पदार्थ की जरूरत जब हद से ज्यादा होने लगे और हम उसका उपभोग भी जरुरत पड़ने पर करने लगे तब उसे नशा का नाम दिया जाता है। चाय आज उसी स्थिति में आ चुका है, कहे तो चाय नशा बन चुका है। अक्सर नशा का मतलब बुरे से होता है पर चाय का नशा अगर सही तरीके से उसका सेवन करें तो हमारे लिए अत्यंत गुणकारी है। आज हम चाय के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें जानेंगे। चाय का वनस्पतिक नाम

Andrographis paniculata! Might be used as herbal alternative and complementary medicine for COVID-19

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The novel Corona Virus disease (COVID-19) is caused by SARS-CoV-2, which is causative agent of the potential fatal disease.During this period, virus multiply and spread throughout our body and after that inflammations in the form of symptoms are produced and suddenly the whole pressure of this virus infection comes on our immune system. So, to fight against COVID-19 the things/questions comes in our mind, How our immune system will be stronger? How the inflammations/symptoms will be suppressed? How COVID-19 will be died? Keeping these things/questions in my mind when I seen in literature, I found a plant Andrographis paniculata (Burm. F.) Wall ex Nees, which is an important medicinal plant of family Acanthaceae, commonly called "Kalmegh".  In traditional medicines this plant is used as a remedy against various incurable diseases like cancer, diabetes, high blood pressure, ulcer, leprosy, bronchitis, skin diseases, flatulence, colic, influenza, dysente

जीवन जीने के लिए क्या अब बंद बोतले ही सहारा होंगी?

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दोस्तों! क्या जीवन जीने के लिए बंद बोतले ही जरूरी हो जाएंगी? जी हां यह बड़ा ही संवेदनशील प्रश्न है। जिस प्रकार से आधुनिकता का दौर चल पड़ा है, उससे तो यही लगता है। आज हर कोई के मुख से यही सुनने को मिलता है "समय बदल रहा है" जो बिल्कुल सत्य है और सुन के अच्छा भी लगता है कि मनुष्य सत्य भी बोलता है। क्योंकि समाज में हर कोई मनुष्य एक दूसरे को अपने झूठ से मूर्ख बनाने पर तुला हुआ है। परंतु मनुष्य अपने अहंकार में आकर यह भूल चुका है की प्रकृति भी कोई चीज है, जिसने जीवन जीने के लिए हमें बहुत से स्रोत दिए हैं। जिनका हम बिना किसी व्यय के, बिना किसी रोक-टोक की प्रयोग करते आ रहे हैं। लेकिन प्रश्न तो यह है कि, कब तक करते रहेंगे? आखिर ऐसा समय जरूर आएगा, जब प्रकृति भी अपनी लाचारी जाहिर करेगी और जहां तक सोचा, समझा, सुना और देखा जा रहा है प्रकृति की लाचारी का समय आ गया है। प्रश्न यह है कि प्रकृति लाचार क्यों है? उसके पीछे भी मनुष्य का ही षड्यंत्र है। जीवों में मनुष्य को सबसे विकसित जीव माना गया है, विकसित होने के साथ-साथ मनुष्य के अंदर अहंकार का भाव भी पूरी तरह से आ चुका है। क्योंकि